Thursday, April 9, 2009

याद

एक अधियारी रात में,
देखा अनंत आकाश के वक्ष पर,
झिलमिलाता हुआ एक तारा।

और मुझे आभास हुआ जैसे-
तारे की झिलमिलाती किरणों के मध्य,
आप झाँक रही हो।
उन्हीं वात्सल्य
और प्रेम भरी दृष्टि से निहारती,
जैसे निहारती थीं मुझे इस धरा पर,
और देती थीं मुझे प्रेरणा,
जगाती थीं आशा,
कि एक दिन,
में भी खड़ा होऊंगा,
सब जगत के सामने आपके समान,
और प्रकाशित करूँगा इस धरा को,
कीर्ति की किरणें फैलाते हुए।

स्मृतियों में खोये हुए,
वह रात तो बीत गई,
लेकिन इश्वर से मांगता हूँ कि-
ऐसी रात प्रतिदिन आए,
जिसमे आपके स्नेह का स्पर्श,
मेरी आत्मा कर सके और,
नई आशा और विश्वास,
मुझ में जगा सके।

जब जब मेरी स्मृति में उभरते हैं तुम्हारे प्रेरणामय शब्द,
कि मैं लिखता रहूँ,
आगे बढ़ता रहूँ,
तब तब हृदय पीड़ा से भर जाता है,
यह सोचकर कि,
तुमने यह भी देखा कि,
में कैसा लिखता हूँ,
क्या लिखता हूँ ,
और क्यूँ लिखता हूँ,
और अब में,
दिखा पाऊंगा,
सुना पाऊंगा,
अपने हृदय में उमड़ते,
भावों के फूल,
तुम्हारे चरणों में चढ़ा पाऊंगा।

पर अनंत आकाश के,
वक्ष को चीरकर,
अपनी वात्सल्यपूर्ण दृष्टि से,
आशीष कि वर्षा करती रहना।

दृष्टि सदा रखना मुझ पर जिससे,
ग़लत पथ पर बढ़ने पाऊं मैं।
हर कदम पर साथ रहना मेरे जिससे,
हर बुराई से लड़ सकूँ मैं।

मन दुःख से भर जाता है,
यह सोचकर,
इतना समय आप यहाँ रहीं,
लेकिन कुछ भी कर सका मैं।
सब कुछ तो आप देकर,
चली गयीं,
एक बार भी,
शुक्रिया कर सका मैं।

अन्तिम बार जब देखा तो,
तुम्हारे मुख से कुछ सुन सका मैं,
अपने मन कि कह सका मैं,
आपने कुछ बताया,
कुछ सुनाया,
बस चुपचाप से,
जिस ओर से आए थे,
उस ओर चुपचाप चल दिए।

लेकिन अन्तिम बार कन्धा देने का जो,
सुख अनुभव किया वह,
सदा स्मृति मैं जीवित रहेगा,
और समय का चक्र ,
उसे मिटा सकेगा,
भुला सकेगा।

Saturday, March 28, 2009

जन्मदिन मुबारक

आज एक साल और बीत गया।

आपका जन्मदिन आपके बिन सूना-सूना सा रह गया,
लेकिन आपके हिस्से का केक जरुर मेरे मुँह में जगह पा गया।

दिल खुश हो गया मगर बिन आपके,
यह खुशी जल्द ही गायब हो गई।

स्वप्न में भी देखता हूँ :
रात के अंधेरे में , नीले आसमां के तले ,
खुले मैदान में , चांदनी सी छांव में ,
चलते हुए आप और मैं ,
अपनी मंजिलों की तरफ़ मीठी-मीठी यादों के संग ,
बढ़ते ही चले जा रहे हैं।

कुछ रोशनी सी होती है,
और मैं शिखर के समीप अपने आप को पाता हूँ।
तभी एक हाथ मेरी ओर चला आया,
जिसका सहारा इस जुददे को शिखर पर ले आया।

ऊपर पहुँच देखता हूँ,
आप मेरा हाथ मैं हाथ डाले इंतज़ार कर रहे हो।

जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ ,
और सभी की तरफ़ से ढेर सारा प्यार।

Tuesday, February 17, 2009

मानव ही मानव को मार रहा है

अल्लाह ने तुझे भेजा था यह सोचकर,
तुझे यह इन्सानरूप दिया था कुछ सोचकर,
तेरे से उम्मीद की थी बहुत सोचकर,
मगर यह क्या,
तू तो अल्लाह के नाम पर ही,
अल्लाह के रूप को ही,
तहस-नहस किए चला जा रहा है

तुझे यह इजाजत किसने दी?

सुन अल्लाह की,
इक दिन तुझे भी जाना है,
फिर यह क्यूँ पाप किए चला जा रहा है?

अरे उस अनाथ से जाके पूछ,
जिसके ऊपर से,
पिता का साया तुने हटा दिया
उसे क्या पता था कि,
यह साया, छाया देने अब कभी नहीं पाएगा

उस बिलखती माँ से जाके पूछ,
जिसकी इकलौती उम्मीद को,
तुने स्वर्ग में भेज दिया,
उस माँ को क्या पता था कि,
उम्मीदों के आगोश में,
इंसान गड्ढों में समा जाता है

उस विधवा से जाके पूछ जो,
अपने पति का इंतज़ार,
भूखे पेट कर रही थी,
उसे क्या पता था कि,
इंतज़ार कि घड़ी चलती ही जायेगी

इन मासूमों ने क्या ग़लत किया,
जिंदगी को बसने से पहले ही उजाड़ दिया

"मानव" , अरे! मुझे क्षमा करना,यह में क्या बोल गया?
तू मानव कहाँ ? तू तो दरिंदा है

इंसान कि गलती तो वाजिब है,
पर अल्लाह! तूने यह कैसे कर दिया?

यहाँ तो धर्म के नाम पर,
कौम् के नाम पर,
मानव ही मानव को मार रहा है