एक अधियारी रात में,
देखा अनंत आकाश के वक्ष पर,
झिलमिलाता हुआ एक तारा।
और मुझे आभास हुआ जैसे-
तारे की झिलमिलाती किरणों के मध्य,
आप झाँक रही हो।
उन्हीं वात्सल्य
और प्रेम भरी दृष्टि से निहारती,
जैसे निहारती थीं मुझे इस धरा पर,
और देती थीं मुझे प्रेरणा,
जगाती थीं आशा,
कि एक दिन,
में भी खड़ा होऊंगा,
सब जगत के सामने आपके समान,
और प्रकाशित करूँगा इस धरा को,
कीर्ति की किरणें फैलाते हुए।
स्मृतियों में खोये हुए,
वह रात तो बीत गई,
लेकिन इश्वर से मांगता हूँ कि-
ऐसी रात प्रतिदिन आए,
जिसमे आपके स्नेह का स्पर्श,
मेरी आत्मा कर सके और,
नई आशा और विश्वास,
मुझ में जगा सके।
जब जब मेरी स्मृति में उभरते हैं तुम्हारे प्रेरणामय शब्द,
कि मैं लिखता रहूँ,
आगे बढ़ता रहूँ,
तब तब हृदय पीड़ा से भर जाता है,
यह सोचकर कि,
तुमने यह भी न देखा कि,
में कैसा लिखता हूँ,
क्या लिखता हूँ ,
और क्यूँ लिखता हूँ,
और अब में,
दिखा न पाऊंगा,
सुना न पाऊंगा,
अपने हृदय में उमड़ते,
भावों के फूल,
तुम्हारे चरणों में चढ़ा न पाऊंगा।
पर अनंत आकाश के,
वक्ष को चीरकर,
अपनी वात्सल्यपूर्ण दृष्टि से,
आशीष कि वर्षा करती रहना।
दृष्टि सदा रखना मुझ पर जिससे,
ग़लत पथ पर न बढ़ने पाऊं मैं।
हर कदम पर साथ रहना मेरे जिससे,
हर बुराई से लड़ सकूँ मैं।
मन दुःख से भर जाता है,
यह सोचकर,
इतना समय आप यहाँ रहीं,
लेकिन कुछ भी न कर सका मैं।
सब कुछ तो आप देकर,
चली गयीं,
एक बार भी,
शुक्रिया न कर सका मैं।
अन्तिम बार जब देखा तो,
न तुम्हारे मुख से कुछ सुन न सका मैं,
न अपने मन कि कह सका मैं,
न आपने कुछ बताया,
न कुछ सुनाया,
बस चुपचाप से,
जिस ओर से आए थे,
उस ओर चुपचाप चल दिए।
लेकिन अन्तिम बार कन्धा देने का जो,
सुख अनुभव किया वह,
सदा स्मृति मैं जीवित रहेगा,
और समय का चक्र ,
न उसे मिटा सकेगा,
न भुला सकेगा।
Thursday, April 9, 2009
Saturday, March 28, 2009
जन्मदिन मुबारक
आज एक साल और बीत गया।
आपका जन्मदिन आपके बिन सूना-सूना सा रह गया,
लेकिन आपके हिस्से का केक जरुर मेरे मुँह में जगह पा गया।
दिल खुश हो गया मगर बिन आपके,
यह खुशी जल्द ही गायब हो गई।
स्वप्न में भी देखता हूँ :
रात के अंधेरे में , नीले आसमां के तले ,
खुले मैदान में , चांदनी सी छांव में ,
चलते हुए आप और मैं ,
अपनी मंजिलों की तरफ़ मीठी-मीठी यादों के संग ,
बढ़ते ही चले जा रहे हैं।
कुछ रोशनी सी होती है,
और मैं शिखर के समीप अपने आप को पाता हूँ।
तभी एक हाथ मेरी ओर चला आया,
जिसका सहारा इस जुददे को शिखर पर ले आया।
ऊपर पहुँच देखता हूँ,
आप मेरा हाथ मैं हाथ डाले इंतज़ार कर रहे हो।
जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ ,
और सभी की तरफ़ से ढेर सारा प्यार।
आपका जन्मदिन आपके बिन सूना-सूना सा रह गया,
लेकिन आपके हिस्से का केक जरुर मेरे मुँह में जगह पा गया।
दिल खुश हो गया मगर बिन आपके,
यह खुशी जल्द ही गायब हो गई।
स्वप्न में भी देखता हूँ :
रात के अंधेरे में , नीले आसमां के तले ,
खुले मैदान में , चांदनी सी छांव में ,
चलते हुए आप और मैं ,
अपनी मंजिलों की तरफ़ मीठी-मीठी यादों के संग ,
बढ़ते ही चले जा रहे हैं।
कुछ रोशनी सी होती है,
और मैं शिखर के समीप अपने आप को पाता हूँ।
तभी एक हाथ मेरी ओर चला आया,
जिसका सहारा इस जुददे को शिखर पर ले आया।
ऊपर पहुँच देखता हूँ,
आप मेरा हाथ मैं हाथ डाले इंतज़ार कर रहे हो।
जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ ,
और सभी की तरफ़ से ढेर सारा प्यार।
Tuesday, February 17, 2009
मानव ही मानव को मार रहा है
अल्लाह ने तुझे भेजा था यह सोचकर,
तुझे यह इन्सानरूप दिया था कुछ सोचकर,
तेरे से उम्मीद की थी बहुत सोचकर,
मगर यह क्या,
तू तो अल्लाह के नाम पर ही,
अल्लाह के रूप को ही,
तहस-नहस किए चला जा रहा है।
तुझे यह इजाजत किसने दी?
सुन अल्लाह की,
इक दिन तुझे भी जाना है,
फिर यह क्यूँ पाप किए चला जा रहा है?
अरे उस अनाथ से जाके पूछ,
जिसके ऊपर से,
पिता का साया तुने हटा दिया।
उसे क्या पता था कि,
यह साया, छाया देने अब कभी नहीं आ पाएगा।
उस बिलखती माँ से जाके पूछ,
जिसकी इकलौती उम्मीद को,
तुने स्वर्ग में भेज दिया,
उस माँ को क्या पता था कि,
उम्मीदों के आगोश में,
इंसान गड्ढों में समा जाता है।
उस विधवा से जाके पूछ जो,
अपने पति का इंतज़ार,
भूखे पेट कर रही थी,
उसे क्या पता था कि,
इंतज़ार कि घड़ी चलती ही जायेगी।
इन मासूमों ने क्या ग़लत किया,
जिंदगी को बसने से पहले ही उजाड़ दिया।
ऐ "मानव" , अरे! मुझे क्षमा करना,यह में क्या बोल गया?
तू मानव कहाँ ? तू तो दरिंदा है।
इंसान कि गलती तो वाजिब है,
पर अल्लाह! तूने यह कैसे कर दिया?
यहाँ तो धर्म के नाम पर,
कौम् के नाम पर,
मानव ही मानव को मार रहा है।
तुझे यह इन्सानरूप दिया था कुछ सोचकर,
तेरे से उम्मीद की थी बहुत सोचकर,
मगर यह क्या,
तू तो अल्लाह के नाम पर ही,
अल्लाह के रूप को ही,
तहस-नहस किए चला जा रहा है।
तुझे यह इजाजत किसने दी?
सुन अल्लाह की,
इक दिन तुझे भी जाना है,
फिर यह क्यूँ पाप किए चला जा रहा है?
अरे उस अनाथ से जाके पूछ,
जिसके ऊपर से,
पिता का साया तुने हटा दिया।
उसे क्या पता था कि,
यह साया, छाया देने अब कभी नहीं आ पाएगा।
उस बिलखती माँ से जाके पूछ,
जिसकी इकलौती उम्मीद को,
तुने स्वर्ग में भेज दिया,
उस माँ को क्या पता था कि,
उम्मीदों के आगोश में,
इंसान गड्ढों में समा जाता है।
उस विधवा से जाके पूछ जो,
अपने पति का इंतज़ार,
भूखे पेट कर रही थी,
उसे क्या पता था कि,
इंतज़ार कि घड़ी चलती ही जायेगी।
इन मासूमों ने क्या ग़लत किया,
जिंदगी को बसने से पहले ही उजाड़ दिया।
ऐ "मानव" , अरे! मुझे क्षमा करना,यह में क्या बोल गया?
तू मानव कहाँ ? तू तो दरिंदा है।
इंसान कि गलती तो वाजिब है,
पर अल्लाह! तूने यह कैसे कर दिया?
यहाँ तो धर्म के नाम पर,
कौम् के नाम पर,
मानव ही मानव को मार रहा है।
जन्मदिन की शुभकामनाएं
जब से आप यहाँ नहीं,
मायूसी सी छा गई।
हरपल आपकी याद,
दिल को सताती रही।
आपके साथ की हुई लड़ाई,
आज भी मन को भाई।
मम्मी थी हैरान, करते थे परेशान,
मिल बाँट कर खा जाते थे सुनी हुई सारी डांट ।
एक कान से सुन लेते थे , दुसरे में न जाती,
मिलते थे एक बार फिर करते खींचातानी ।
मम्मी कहती रहो अलग-अलग,
पर दो घंटे बाद होते एक-दुसरे के समक्ष।
जब भी कुछ टूटा ,हो गए एक,
बात बीतते ही एक के हो गए टुकड़े अनेक।
आपकी सरदार की लीला ,
लगती थी एक क्रीड़ा ,
होती थी थोड़ी पीड़ा ,
जुददे के फेर में फंसता था मुझ जैसा एक अनोखा कीड़ा।
अब तो बस इन्हीं बातों को याद करते रहता हूँ ,
इन्हीं यादों के संग दिल को संजोये रखता हूँ।
आपको जन्मदिन का उपहार तो न भेज सका,
बस इन्हीं चंद यादों का पैगाम बिछा सका।
बस यही दुआ करता हूँ,
आप जहाँ भी रहो, जहाँ भी जाओ,
खुशियों का समंदर समेटे हुए पाओ।
मायूसी सी छा गई।
हरपल आपकी याद,
दिल को सताती रही।
आपके साथ की हुई लड़ाई,
आज भी मन को भाई।
मम्मी थी हैरान, करते थे परेशान,
मिल बाँट कर खा जाते थे सुनी हुई सारी डांट ।
एक कान से सुन लेते थे , दुसरे में न जाती,
मिलते थे एक बार फिर करते खींचातानी ।
मम्मी कहती रहो अलग-अलग,
पर दो घंटे बाद होते एक-दुसरे के समक्ष।
जब भी कुछ टूटा ,हो गए एक,
बात बीतते ही एक के हो गए टुकड़े अनेक।
आपकी सरदार की लीला ,
लगती थी एक क्रीड़ा ,
होती थी थोड़ी पीड़ा ,
जुददे के फेर में फंसता था मुझ जैसा एक अनोखा कीड़ा।
अब तो बस इन्हीं बातों को याद करते रहता हूँ ,
इन्हीं यादों के संग दिल को संजोये रखता हूँ।
आपको जन्मदिन का उपहार तो न भेज सका,
बस इन्हीं चंद यादों का पैगाम बिछा सका।
बस यही दुआ करता हूँ,
आप जहाँ भी रहो, जहाँ भी जाओ,
खुशियों का समंदर समेटे हुए पाओ।
Monday, February 16, 2009
कश्मीर तो हमारा है
दो देश द्वेष में भिड गए,
लाशों का ढेर कर गए।
कहीं था बवंडर तो कहीं थी आंधी ,
बस यूहीं चल रही थी दो देशों की कहानी ।
पर तभी आया एक भूचाल , मच गया तूफान,
तबाही का मंजर , समाया दिल के अन्दर।
पाकिस्तान ने कश्मीर को तबाह करने की ठानी,
पर पड़ी उसे भारतवासियों से मुँह की खानी।
पाकिस्तान के एक हिस्से ने किया कश्मीर पर वार,
पर भारत के हर हिस्से में गूंज गई आवाज।
पाकिस्तान ने जवाब दिया एक बार फिर हाहाकारी से,
पर हिंदुस्तान ने किया नतमस्तक एक बार फिर दिलदारी से।
बहुत समझाया , बहुत चेताया ,पर पड़ी थी उन्हें कश्मीर की
अंत में निर्णय लिया "जैसा को तैसा" देने की।
अरे! कश्मीर तो हमारी मोहब्बत है, चाहत है, जन्नत है,
दिलों में बसा हुआ संसार है ,
अरे! हमारी भारतमाता का मस्तक है,
जिस दिन यह मस्तक अलग हुआ , संपूर्ण शरीर समाप्त हुआ ।।।
लाशों का ढेर कर गए।
कहीं था बवंडर तो कहीं थी आंधी ,
बस यूहीं चल रही थी दो देशों की कहानी ।
पर तभी आया एक भूचाल , मच गया तूफान,
तबाही का मंजर , समाया दिल के अन्दर।
पाकिस्तान ने कश्मीर को तबाह करने की ठानी,
पर पड़ी उसे भारतवासियों से मुँह की खानी।
पाकिस्तान के एक हिस्से ने किया कश्मीर पर वार,
पर भारत के हर हिस्से में गूंज गई आवाज।
पाकिस्तान ने जवाब दिया एक बार फिर हाहाकारी से,
पर हिंदुस्तान ने किया नतमस्तक एक बार फिर दिलदारी से।
बहुत समझाया , बहुत चेताया ,पर पड़ी थी उन्हें कश्मीर की
अंत में निर्णय लिया "जैसा को तैसा" देने की।
अरे! कश्मीर तो हमारी मोहब्बत है, चाहत है, जन्नत है,
दिलों में बसा हुआ संसार है ,
अरे! हमारी भारतमाता का मस्तक है,
जिस दिन यह मस्तक अलग हुआ , संपूर्ण शरीर समाप्त हुआ ।।।
Sunday, February 15, 2009
बढे चलो
जिंदगी में ऊचायिओं को छूने का जज्बा तुम रखो ,
जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना तुम रखो ।
ना सर झुकाना ,
ना गिडगिडाना ,
सिर्फ़ आगे ही बढ़ते ही जाना।
जिस दिशा में एक बार कदम बढ़ा दिए तुमने,
उस दिशा में प्राप्त कर फतह ही लौटना होगा तुम्हें।
चाहे पथ पर चलते हुए पैर दुखते रहें,
लेकिन तुम न रुकना उस पल जिससे दीप जलते रहें ।
दीपक की भांति प्रज्जवलित रहना होगा तुम्हें,
अंधकार को स्वतः ही समाप्त करना होगा तुम्हें।
दुनियावालों को दिखाना होगा तुम्हें,
कि दुनिया जीती जाती है कर्मों से, भला भाग्य से कहाँ।
जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना तुम रखो ।
ना सर झुकाना ,
ना गिडगिडाना ,
सिर्फ़ आगे ही बढ़ते ही जाना।
जिस दिशा में एक बार कदम बढ़ा दिए तुमने,
उस दिशा में प्राप्त कर फतह ही लौटना होगा तुम्हें।
चाहे पथ पर चलते हुए पैर दुखते रहें,
लेकिन तुम न रुकना उस पल जिससे दीप जलते रहें ।
दीपक की भांति प्रज्जवलित रहना होगा तुम्हें,
अंधकार को स्वतः ही समाप्त करना होगा तुम्हें।
दुनियावालों को दिखाना होगा तुम्हें,
कि दुनिया जीती जाती है कर्मों से, भला भाग्य से कहाँ।
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